गंगा साफ है तो फिर अरबों का खर्च क्यों?

    संतोष शुक्ल, मेरठ। गंगा नदी के कायाकल्प का दम भरने वाली केंद्र सरकार भ्रामक आंकड़ों में उलझ गई। क्लीन गंगा मिशन जिन आंकड़ों पर आगे बढ़ रहा है, उसके मुताबिक गंगाजल पूरी तरह प्रदूषणमुक्त है। इस रिपोर्ट में गंगाजल में पीएच मान, घुलनशील ऑक्सीजन (डीओ), बायोडिसॉल्व्ड आक्सीजन (बीडीओ) एवं कोलीफार्म का लोड संतुलित बताकर सफाई योजना के औचित्य पर ही प्रश्न खड़ा कर दिया गया है। अगर गंगा नदी में कोई हैवी मेटल एवं प्रदूषण नहीं है, फिर केंद्र ने दो हजार करोड़ रुपये का भारी भरकम बजट क्यों आवंटित कर दिया है।

गंगा सफाई के नाम पर 1985 से लेकर अब तक नौ हजार करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च किए जा चुके हैं। मोदी सरकार ने भी करीब दो हजार करोड़ रुपये का एकमुश्त बजट जारी किया है। नमामि गंगे परियोजना से पहले केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड एवं पांच राज्यों के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने गंगाजल पर रिपोर्ट दी, जिसमें भयावह प्रदूषण बताया गया। किंतु क्लीन गंगा मिशन में केंद्र ने जिस जांच रिपोर्ट पर गंगा सफाई अभियान आगे बढ़ाया, उसने मुहिम पर ही प्रश्न खड़ा कर दिया। इस रिपोर्ट के मुताबिक गंगा नदी में उत्तराखंड से लेकर कोलकाता तक कोई प्रदूषण नहीं है।

मेरठ के डॉ. संजीव अग्रवाल की आरटीआई से खुलासा हुआ कि नेशनल क्लीन गंगा मिशन के आंकड़ों में गंगाजल के पीएच, डीओ, बीओडी एवं कोलीफार्म के स्तर को संतुलित बता दिया गया। पर्यावरण विशेषज्ञ डॉ. नीरज का कहना है कि जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय की रिपोर्ट चौंकाने वाली है। ऐसे में तो गंगा सौ वर्षों में भी साफ नहीं होगी। गंगाजल में कोलीफार्म डीओ और बीओडी की तुलना में ज्यादा तेजी से बढ़ रहा है।
Powered by Blogger.