500 शब्दों से ज्यादा हुआ सवाल तो यूपी में नहीं मिलेगा आरटीआई का जवाब
अगर आपको यूपी में आरटीआई के जरिए कोई जानकारी हासिल करनी है तो संक्षेप लिखने की आदत डाल लेनी चाहिए।
राज्य सरकार ऐसी किसी भी आरटीआई पर विचार नहीं करेगी, जिसमें 500 से अधिक शब्दों में बात लिखी गई हो। यही नहीं यदि सरकारी दफ्तर के पास संबंधित जानकारी नहीं हैं, तो उसके या जन सूचना अधिकारी के लिए सूचना देना या आवेदन को ट्रांसफर करना अनिवार्य नहीं है। नए नियमों के मुताबिक 500 से अधिक शब्दों के किसी भी आवेदन को जन सूचना अधिकारी द्वारा रद्द किया जा सकता है।
आरटीआई ऐक्ट के मुताबिक किसी भी अधिकारी के लिए पांच दिनों के भीतर सूचना देना या आवेदन को संबंधित विभाग के पास ट्रांसफर करना अनिवार्य होता है। यही नहीं यूपी नियमों की धारा 4 (5) में स्पष्ट किया गया है, 'यदि सरकारी संस्था से मांगी गई सूचना दो विभागों से संबंधित है तो एक विभाग दूसरे के पास याचिका को स्थानांतरित नहीं कर सकता है।' 3 दिसंबर, 2015 को अधिसूचित किए गए नियम ने आरटीआई कार्यकर्ताओं की चिंताएं बढ़ा दी हैं। अधिसूचना में कहा गया है कि आरटीआई ऐक्ट में कई ऐसे प्रावधान हैं, जो नियमों का तो उल्लंघन करते ही हैं, बल्कि आरटीआई कार्यकर्ताओं की जान को भी खतरा रहता है।
यूपी रूल्स के सेक्शन 13 के मुताबिक याचिकाकर्ता को अपनी अर्जी वापस लेने की अनुमति है। सेक्शन 13 (3) के मुताबिक याचिकाकर्ता की मृत्यु होने की स्थिति में याचिका पर सुनवाई की गति धीमी हो जाती है। आरटीआई ऐक्टिविस्ट लोकेश बत्रा ने कहा, 'यह नियम आरटीआई कार्यकर्ताओं को आसान निशाना बनाने के लिए प्रेरित करती है।' बत्रा ने कहा कि केंद्र सरकार ने भी इसी तरह का नियम लाने का फैसला लिया था, जिसे उसने सिविल सोसाइटी के भारी विरोध के बाद वापस ले लिया था। कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनशिटिव के वेंकटेश नायक ने कहा कि यूपी रूल्स के कम से कम 21 प्रावधान ऐसे हैं, जो सीधे तौर पर आरटीआई ऐक्ट के खिलाफ हैं।
राज्य सरकार ऐसी किसी भी आरटीआई पर विचार नहीं करेगी, जिसमें 500 से अधिक शब्दों में बात लिखी गई हो। यही नहीं यदि सरकारी दफ्तर के पास संबंधित जानकारी नहीं हैं, तो उसके या जन सूचना अधिकारी के लिए सूचना देना या आवेदन को ट्रांसफर करना अनिवार्य नहीं है। नए नियमों के मुताबिक 500 से अधिक शब्दों के किसी भी आवेदन को जन सूचना अधिकारी द्वारा रद्द किया जा सकता है।
आरटीआई ऐक्ट के मुताबिक किसी भी अधिकारी के लिए पांच दिनों के भीतर सूचना देना या आवेदन को संबंधित विभाग के पास ट्रांसफर करना अनिवार्य होता है। यही नहीं यूपी नियमों की धारा 4 (5) में स्पष्ट किया गया है, 'यदि सरकारी संस्था से मांगी गई सूचना दो विभागों से संबंधित है तो एक विभाग दूसरे के पास याचिका को स्थानांतरित नहीं कर सकता है।' 3 दिसंबर, 2015 को अधिसूचित किए गए नियम ने आरटीआई कार्यकर्ताओं की चिंताएं बढ़ा दी हैं। अधिसूचना में कहा गया है कि आरटीआई ऐक्ट में कई ऐसे प्रावधान हैं, जो नियमों का तो उल्लंघन करते ही हैं, बल्कि आरटीआई कार्यकर्ताओं की जान को भी खतरा रहता है।
यूपी रूल्स के सेक्शन 13 के मुताबिक याचिकाकर्ता को अपनी अर्जी वापस लेने की अनुमति है। सेक्शन 13 (3) के मुताबिक याचिकाकर्ता की मृत्यु होने की स्थिति में याचिका पर सुनवाई की गति धीमी हो जाती है। आरटीआई ऐक्टिविस्ट लोकेश बत्रा ने कहा, 'यह नियम आरटीआई कार्यकर्ताओं को आसान निशाना बनाने के लिए प्रेरित करती है।' बत्रा ने कहा कि केंद्र सरकार ने भी इसी तरह का नियम लाने का फैसला लिया था, जिसे उसने सिविल सोसाइटी के भारी विरोध के बाद वापस ले लिया था। कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनशिटिव के वेंकटेश नायक ने कहा कि यूपी रूल्स के कम से कम 21 प्रावधान ऐसे हैं, जो सीधे तौर पर आरटीआई ऐक्ट के खिलाफ हैं।
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